क्रांति मानव जाती का एक अपरिहार्य अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का एक कभी न ख़त्म होने वाला जन्म-सिद्ध अधिकार है. श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है।
2/7
Bhagat Singh
प्रेमी, पागल, और कवी एक ही चीज से बने होते हैं।
3/7
Bhagat Singh
ज़िन्दगी तो अपने दम पर जी जाती हैं, दुसरो के कंधो पर तो जनाजे उठा करते हैं।
4/7
Bhagat Singh
जो व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी।
5/7
Bhagat Singh
व्यक्तियो को कुचल कर, वे विचारों को नहीं मार सकते।
6/7
Bhagat Singh
ज़रूरी नहीं था की क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था।
7/7
Bhagat Singh
आम तौर पर लोग चीजें जैसी हैं उसके आदि हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की ज़रुरत है।